Saturday, April 4, 2009

किसकी सत्ता

मैं इस समय पुरे देश पर नजर न डालकर उत्तर प्रदेश का रुख करता हूँ
वर्षो से उत्तर प्रदेश दिल्ली पर सत्ता करने का एक आवश्यक मार्ग हुआ करता था , किंतु अब स्थिति काफी बदल चुकी है । क्षेत्रीय दलों के उभार और राष्ट्रीय दलों के पतन से समीकरण काफी कुछ बदल गया है। बी यस पी भले ही एक राष्ट्रीय दल हो लेकिन अभी भी उसका चाल , चेहरा, और चरित्र क्षेत्रीय है अभी वास्तविक राष्ट्रीय दल के रूप मे पहचान मिलनी बाकी है
प्रदेश की सामयिक स्थिति बेहद रोचक और रोमांचक दोनों है बी यस पी और सपा दोनों एक दुसरे को कड़ी टक्कर दे रही हैं लेकिन बी जे पी भी कई जगहों पर अप्रत्यासित ढंग से टक्कर दे रही है , पूर्वांचल मे एक नए पार्टी (पीसपार्टी ) ने सपा की गणित गड़बड़ कर दी है जिसका फायदा बसपा और बीजेपी दोनों को हो रहा है , इसका असर संत कबीर नगर , महराज गंज , गोरखपुर ,बस्ती , गोंडा इत्यादि मे देखने को मिल सकता है , चोकिये नही यह यथार्थ है
संत कबीर नगर मे राजेश सिंह बहुत हद तक सपा को रनर अपकी स्थिति मे ला दिए हैं , उशी तरह बस्ती मे वाई डी सिंह जो बीजेपी के हरीश दुबे के मुकाबले कमजोर प्रत्याशी है की हालत और पतली कर सकता है पीश पार्टी का प्रत्यासी
बहार हाल पूर्वांचल से नतीजे चोकाने वाले हो सकते हैं

Wednesday, September 10, 2008

जीवन क्षणिक है......

अमिताभ जी , जिनका दैहिक अस्तित्व अब हमारे बीच नही है , एक सड़क दुर्घटना मे असमयिक
उनकी मृत्यु , बहुत खल गया , पत्रकारिता के क्षेत्र मे एक स्तम्भ बन कर उभर रहे थे की इश्वर ने उनकी कामयाबी .......
आज मन बहुत अशांत है , उनके ब्यक्तित्व ,उनके जीवन के उतार-चढाव , उनकी कामयाबी के बिषय मे कल लिखूंगा .

Sunday, June 1, 2008

अर्थव्यवस्था मे जान फूंकी कृषि ने

सरकार ने २००७-०८ के संशोधित आंकड़े २९ मई को जारी कि , ख़बर सकारात्मक है तथा सरकार को सुकून देने वाली भी किंतु चिंता का बिषय यह है कि आड़े वक्त मे कृषि ने साथ दिया है , जबकि अन्य सभी सेक्टर मसलन विनिर्माण , परिवहन ,बिजली, संचार, गैस , व्यापार , होटल इत्यादी मे पिछले वर्ष कि तुलना मे गिरावट दर्ज कि गई है । कृषि एक ऐसा क्षेत्र रहा जहाँ अनुमान (२.६%) से अधिक वृद्धि (४.५%) रही । सरकार के यह जय किसान के नारे से हुआ या राम भरोसे (यद्यपि कि अभी तक ऐसा ही हुआ है ) अभी निश्चय पूर्ण नही कहा जा सकता जब तक कि चार - पाँच साल इसी तरह कि वृद्धि न देखी जाए । सरकार कि खुशफहमी अन्तिम तिमाही के आंकड़े उड़ाने के लिए पर्याप्त है , यथा - विनिर्माण कि वृद्धि ५.८% (जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि मे १२.८% थी ), बिजली एवं गैस आपूर्ति कि वृद्धि दर ७.८ से घट कर ६.३% रह गई ।
ऐ आंकड़े यह दर्शाते है कि सम्प्रंग सरकार पुनः इतिहास दोहराने कि कोशिश न करे , क्योंकि ठीक पाँच वर्ष पहले एन डी ऐ ने भी GDP का शोर मचाया था , लेकिन आम जनता ने उसे नकार दिया था, वह इन्हे भी नकार देगी क्योंकि वह आंकडों कि मक्कारी को कुछ नही समझती उसे समझ मे सिर्फ़ अपनी दाल रोटी ही आती है , यदि उसे यह महंगाई के वजह से मसक्कत से मिल रही है तो यह महंगाई सम्प्रंग सरकार को बड़ी महंगी पड़ेगी

Monday, May 19, 2008

राजकुमारी के एक वर्ष

बहन जी एक वर्ष पहले गुंडागर्दी , अराजकता, भ्रष्टाचार , छिनोती, बलात्कार के माहोल मे राज गद्दी पर आरूढ़ हुई थी । तब से उत्तरप्रदेश मे काफी परिवर्तन आ चुका है । गुंडे बिल मे घुस गए या अपना चोला बदल लिए , यह मैं ठीक से नही कह सकता , किंतु इतना तो सत्य है की उनका स्वर्णकाल गुजर चुका है ।
रही विकाश की बात तो बहन जी ने इसके लिए ठोस पहल की हैं , और अपने उन तमाम गलतीओं को जो जाने अनजाने मे पिछले शासन काल मे हो गई थी उसको सुधार रही हैं । अम्बेडकर मैदान /पार्क को डायनामाईट से उडाकर पुनः भभ्य पार्क बना रही हैं , उसमे हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है , करोडो का कमिसन इंजीनियरों और अधिकारिओं मे बटा, इससे यह इंगित होता है की उन्हें सर्व समाज की फिक्र है । दलितों को रोजगार और कुलीन को कमीसन (यह वर्गीकरण जातिगत न हो कर वर्गगत है । )।
रही बात भ्रष्टाचार की तो बहन जी ने इसे और अधिक संस्थागत बनाने और लोकतंत्र के पांचवे खम्भे के रूप मे विकसित करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं । इस वर्ष उन्होंने करोडो का आय कर दिया और यह आय उन्हें उत्तर प्रदेश मे एक वर्ष के सुशासन के पारितोषक स्वरूप प्राप्त हुआ है ।
अधिकारिओं को बहन जी से स्थानान्तरण को लेकर बड़ी शिकायत थी । इसका ध्यान रखते हुए बहन जी ने एक वर्ष पूरे होने पर स्थानांतरण निति की बाकायदा घोषणा की . सभी स्थानांतरण ३० जून तक हो जाने हैं , और साथ ही उसमे एक क्लाज यह भी है कि बिना मंत्री के अनुमोदन के कोई भी ( समूह ख तक ) स्थानांतरण नहीं हो सकता । इस समय मंत्री जी के वहाँ पर्व का माहोल है । ज्यादा लाओ ज्यादा पाओ के सिद्धांत पर तबादला हो रहा है ।
क्रमश

Saturday, May 17, 2008

कमेन्ट के लिए ........

कमेन्ट ब्लॉग के दुनिया मे जीवनदायनी हे , इसके विना ब्लॉग के अस्तित्व का कोई अर्थ नही है । ब्लॉग के इस जीवनदायनी प्रेरणा के लिए आप सभी को धन्यबाद । अनिल जी आप ने जिस तरह से मुझे और गहरे मे उतरने की प्रेरणा दी हे , उसके लिए मैं आप का आभारी हूँ । मैं ख़ुद और गहरे मैं जा कर लिखना चाहता था किंतु समयाभाव के वजह से नही लिख पाया .
यहाँ एक बात कहना चाहता हूँ , कि भारत मे अभी हालात काबू मे हे किंतु यदि सावधानी से कदम नही बढाये गए तो
आने वाले समय मैं हालात और ख़राब हो सकते हैं । वायदा कारोबार का कीमत गहनता पर कितना असर हुआ हे , अभी इस पर गहराई से अध्ययन होना जरूरी हे । वित्त्यबाज़ार के पोसकों के विश्लेषण को कम से कम मैं सही नही मान सकता , क्योंकि यह बात न तो सैधांतिक स्तर पर , और न ही व्यवहारिक स्तर पर गले उतरती हे कि आभाव मे सट्टेबाजी से कीमत न बढे ।
मुद्दा यह नही हे कि कितना खाद्यान सड़ रहा हे , मुद्दा यह हे कि सरकार यह सब क्यों होने देती हे ?, इसी से जुड़ा हे कृषि कि उपेछा - वेयर हाऊसिंग , फ़ूड प्रोसेसिंग जैसी बुनियादी चीजो के विकास का आभाव । भारत मे सब्जी और फल के सिर्फ़ वेस्टेज को रोक दिया जाए तो हम अफ्रीका कि अवस्यकता कि पूर्ति तो कर ही सकते हैं ।

Sunday, May 11, 2008

कीमतों का बढ़ना............

महंगाई का स्वरूप वैश्विक है , इससे कोई इंकार नही कर सकता । लेकिन केन्द्र सरकार इसका हवाला देकर ,पल्ले नही झाड़ सकती । प्रधानमंत्री जी कई अवसर पर इस तथ्य का हवाला दे चुके हैं । जहाँ तक मेरा मानना है ,

तात्कालिक कारणों मे -

तेल की कीमतों मे बेतहासा वृद्धि

होर्डिंग ( कालाबाजारी )

वायदा कारोबार

और ग़लत निर्यात नीति

दीर्घकालिक कारणों मे -

कृषि की उपेच्छा

व्यवसायिक खेती पर अधिक जोर

खाद्य सुरक्षा की अनदेखी


Saturday, May 10, 2008

कीमतों का बढ़ना ..........

(आज सुबह जब उठा तो लगभग सभी पेपरों का पहला पन्ना महंगाई को समर्पित मिली सरकार के अपने ही कई दिक्कते सताए जा रही है , और मीडिया वाले महंगाई के ही पीछे पड़ें हैं .............)
जनता उन्ही चीजों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती है जिससे उसका सीधा नुकसान होता है, महंगाई तो सीधे उसके जेब पर हमला करती है , इस भौतिकवादी संसार मे जेब पर हमला कितना खतरनाक हो सकता है इसे आप भी जानते हैं , हम भी जानतें हैं और सरकार भी जानती है ......... । इसीलिए सरकार की नींद उडी है कि मई मे चुनाव होने हैं और महंगाई की मेल नॉन-स्टॉप बढ़ती ही चली जा रही है ।
अब तक सरकार ने छः हजार करोड़ से ज्यादा रूपए महंगाई रोकने पर खर्च कर चुकी है , यह महंगाई रोकने मे तो नही किंतु महंगाई बढ़ाने मे जरूर सफल हुई होगी , क्योंकि ऐ पैसे गैर उत्पादक ढंग से मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था मे बढाते हैं ।
अभी सरकार को चुनाव के मद्देनज़र कई काम करने हैं , और उन्ही कामो मे से एक है छठे वेतन आयोग कि सिफारिशों को लागू करना , जो आग मे घी का काम कर सकता है सरकार एक उचित अवसर की ताड़ मे बैठी है । फिलहाल इस स्थिति मे सरकार वेतन बढ़ाने से रही ।

भारत मे इस समय इन्फ्लेशन की नही अपितु स्तैग्फ्लेशन की स्थिति बनती जा रही है । जो आगे चल कर और भी स्पष्ट होगी । क्योंकि पिछले वित्त वर्ष के अन्तिम क्वार्टर के परिणाम मंदी के संकेत दे रहे हैं और यदि वास्तव मे मंदी के साथ कीमतों मे वृद्धि जरी रहेगी तो यह केन्द्र सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित होगी ।

अगले अंक मे ..... इसके लिए कौन जिम्मेदार?